Hindi explanation of the Gold Watch 12th Class.
UP Board Solution for Class 12th Poetry Short Stories Chapter 1 The Gold Watch.
Hi, Guys आज हम लोग the gold watch sort story lesson का हिंदी अनुवाद, Summary in Hindi and English के बारे में पढ़े गे। इस पाठ में एक संकू नामक व्यक्ति है जो गरीबी के कारण अपने इनजियर की घडी चुरा लेता है लेकिन बाद में पकडे जाने के डर से वापस संकू सोने की घड़ी मेज पे वापस रख देता है और वापस चला जाता है.
The gold watch story summary In English.
This lesson is written by P. Raphy. In this lesson, a Sanku man is the main character. He is a poor man and he has one child, a wife both belong to poor families. He is pregnant and one child before sanku has.
The gold watch summary in Hindi.
'The Gold Watch ' कहानी में लेखक ने कारखाने में काम करने वाले संकू नामक एक निर्धन मजदूर की मजबूरी और मानसिक दशा का वर्णन किया है। संकू चोर नहीं था लेकिन निर्धनता तथा कर्ज ने उसे इंजीनियर के घड़ी चुराने के लिए मजबूर कर दिया था। किन्तु उसकी नैतिक चेतना ने उसे बल प्रदान किया और उसे वह चुराई हुई घडी वापस इंजीनियर के मेज पर रख दी।
The gold watch short story class 12 in Hindi Explanation.
पिछली अनेक रातो की तरह संकू उस रात भी नहीं सो सका। वह अपनी बिस्तर पर करवटें बदलता रहा , किन्तु उससे कोई काम नहीं बना। ...... वह जितना ज्यादा सोचता था उसकी चिंता उतना बढ़ी हुई मालूम होती थी। उसने उस अंधकार में अपनी आँखे बंद कर ली और अपनी फटी चटाई अपर लेट गया। तो भी उसे सब कुछ इतना साफ - साफ दिखाई दे रहा था मनो की वह दिन (की रोशनी ) में सब कुछ देख रहा हो। सूना पड़ा दफ्तर का कमरा ___ जब हर एक आदमी दोपहर के भोजन के लिए बाहर चला जाता है। कांच की खिड़की थोड़ी भिड़ी हुए थी। अंदर राखी टेबल के एक किनारे पर कुछ मोटी किताबें राखी हुई थी , दूसरे किनारे पर एक कलम , स्याही का एक बोतल तथा ऐसी ही कुछ चीजे राखी हुए थी और इनके बीच में एक किताब के ऊपर सोने की चैन लगी हुए सोने की एक घड़ी राखी हुए थी।
खिड़की को पूरा खोलिए और और अपना हाथ करीब एक फूट अन्दर बढाइये और आप उस घड़ी को उठा सकते हैं। हर एक व्यक्ति दोपहर का खाना खाने बाहर चला गया था। किसी को जरा भी मालूम नहीं होगा। ...... .।
पछले अनेक दिनों में लगातार की हुई अपनी कोशिशें , अपनी कायरता और अपनी हिचकिचाहट उसे याद आने लगी। उसे उस समय वहाँ कोई भी नजर नहीं आया था। तो भी वह डर रहा था। वह काँप रहा था और उसी साँस तेजी से चल रही थी। यही कारण था कि वह घड़ी उठा लेने से हर बार रुक जाता था।
और अधिक देर तक टालमटोल करने से काम चलने वाला नहीं था। यदि वह और अधिक सोंच -विचार करता रहा तो वह कुछ भी करने के लायक नहीं रहता। शायद वह मूर्खतावश अपनें मन की इच्छा को जोर से कह भी सकता था। इसलिए उसे अगले दिन उस वस्तु को जरूर ले लेना होगा। मनो की वह वस्तु को नहीं लेता है तब?
संकू के विचार उसके अपने जीवन की पीडादायनी समस्याओं के आसपास ढहरने लगे। अगला दिन महीने का तीसरा दिन होगा। अगले तीन दिनों में उसे तरह दिनों का वेतन तरह रूपये मिलेगा। एक दुकान से खरीदी हुई चीजों के बदले उसे उसको दुकानदार को साढ़े चार रूपये देने थे , तब उसके पास साढ़े आठ रूपये बचे रहेंगे। पिछले महीने अपनी माँ की मृत्यु की बरसी के लिए जब वह घर गया था तब उसने फण्ड में से जो दस रूपये लिए थे उनमे से उसने अभी तक केवल पांच रूपये चुकाए थे।
उसके बाकि के पांच रूपये छः पैसे प्रति सप्ताह के ब्याज के साथ अवश्य दे देने चाहिए। चाय की दुकान पर चाय वाले के पिछले चले आ रहे डेढ़ रूपये के अतिरिक्त दो सप्ताह के अतिरिक्त दो सप्ताह के तीन रूपये से ज्यादा और देने थे चावल , बीड़ी आदि चीजों के उसे अली के छः रूपये देने थे। मकान का किराया तीन रूपये तीन माह था। इन रकमों के अलावा उसने बारह पैसे , पचीस पैसे और पचास पैसे के छोटे - छोटे कर्ज अनेक लोगो से ले रखे थे।
दो दिन पहले उसकी पत्नी ने उसे याद दिलाई थी कि एक रूपये मछलीवाली को दिया जाना था। संकू ने मन ही मन उन सारी धनराशि का जोड़ लगाया जिसकी उसको आवश्यकता थी उसको केवल साढ़े आठ रूपये मिलने वाले थे। उस पर बाईस रूपये तरह पैसे का कर्ज था। जिसकी और दूसरी आवश्यकताएँ भी थी। उसने तीन रूपये अपने पत्नी से उद्धार भी ले रखे थे। यह उधर उस रकमक में से था।
जो संकू कजी पत्नी ने धीरे - धीरे इधर - उधर से से बचक क्र जमा की थी ताकि उसके कमर छोटे बच्चे के लिए उसके कमर में बाँधने करधनी बन सके। उसने अपनी पत्नी वादा किया था कि अपने उस महीने के वेतन में से उसे करधनी अवश्य खरीद देगा।
उसके बाकि के पांच रूपये छः पैसे प्रति सप्ताह के ब्याज के साथ अवश्य दे देने चाहिए। चाय की दुकान पर चाय वाले के पिछले चले आ रहे डेढ़ रूपये के अतिरिक्त दो सप्ताह के अतिरिक्त दो सप्ताह के तीन रूपये से ज्यादा और देने थे चावल , बीड़ी आदि चीजों के उसे अली के छः रूपये देने थे। मकान का किराया तीन रूपये तीन माह था। इन रकमों के अलावा उसने बारह पैसे , पचीस पैसे और पचास पैसे के छोटे - छोटे कर्ज अनेक लोगो से ले रखे थे।
दो दिन पहले उसकी पत्नी ने उसे याद दिलाई थी कि एक रूपये मछलीवाली को दिया जाना था। संकू ने मन ही मन उन सारी धनराशि का जोड़ लगाया जिसकी उसको आवश्यकता थी उसको केवल साढ़े आठ रूपये मिलने वाले थे। उस पर बाईस रूपये तरह पैसे का कर्ज था। जिसकी और दूसरी आवश्यकताएँ भी थी। उसने तीन रूपये अपने पत्नी से उद्धार भी ले रखे थे। यह उधर उस रकमक में से था।
जो संकू कजी पत्नी ने धीरे - धीरे इधर - उधर से से बचक क्र जमा की थी ताकि उसके कमर छोटे बच्चे के लिए उसके कमर में बाँधने करधनी बन सके। उसने अपनी पत्नी वादा किया था कि अपने उस महीने के वेतन में से उसे करधनी अवश्य खरीद देगा।
संकू का दिल अनियन्त्रित रूप से तेज होकर धड़कने लगा। अपने दिल की धड़कनो के बीच में से उसे सुनायी पड़ने लगा चाय वाले चुन्ना का तीखा स्वर , अली की खोखली हँसी और बेहूदी गालियाँ और फण्ड के इंचार्ज लोलप्पन की क्रोधित बातचीत। उसे लगा जैसे की लोग उसे शरारती लड़को की तरह हाथ में लाठियाँ लेकर एक आवारा कुत्ते की तरह से घेर रहे है। कितना भयंकर दृश्य था।
इस सबको असहनीय पाकर संकू करवटें बदलकर पेट के बल लेट गया और उसने सोंचा , '' कल उसको घडी को उठा लेने के अलावा मेरे पास और कोई चारा नहीं तह है। क्या उससे कम से कम बीस रूपये नहीं मिल जायेंगे ? पन्द्रह तक से काम चल जायेगा। पन्द्रह और साढ़े आठ अर्थात साढ़े तेईस रूपये। इससे पन्द्रह रूपये से अधिक ही मिलेगा वह प्न कर्ज उतरने और शांतिपूर्वक योग्य हो जाये गा। एक ऋनमुक्त जीवन। '' आराम के भावना के साथ वह नींद में डूब गया। सुबह हो गई।
'' यह क्या , तुम अभी तक सोये पड़े हो ?'' हलके से संकू का कन्धा हिलाते हुए उसकी पत्नी ने कहा। '' सुर्य निकले बहुत देर हो चुकी है। संकु ने जल्दी से अपना सर उठाया। उसकी पत्नी ने छोटे बच्चे को गोद में उठा लिया जो उसकी तरफ रेंगता आ रहा था और संकू से पूंछा , '' क्या तुहे काम पर नहीं जाना है ?'' अरे हाँ , '' उसने कहा और बिस्तर से उठ गया सुबह से सूर्य की सुनहरी किरणे जो पूर्व की दिशा की ओर वाले बाँस के हरे -भरे झुरमुट को भेद रही थी तथा ताड के पत्तों वाले पुराने छपर को चमका रही थी , को सीखते हुए वह जल्दी जल्दी आँगन में उतर गया।
सदैव की भांति हाथ मुहं धोये - काम पर जाने वाले कपडे पहने और अपनी फैक्ट्री के लिए निकलने ही वाला था की उसकी पत्नी ने कहा , '' सुनो , बच्चे के लिए कोई मलहम अवश्य खरीद कर लाना है , कहते हुए उस पत्नी ने उसकी संकू की ओर एक आदेशात्मक दृश्य डाली। संकू को लगा की बच्चे के शरीर की हर एक पक्ति हुई फुंसी संकू के तरफ भयानक दृश्य से घूर रही है। एक पल खामोसी में गुजर गया। '' किस तरह का मलहम ? '' संकु ने इ मुर्ख आदमी की तरह पूंछा।
सदैव की भांति हाथ मुहं धोये - काम पर जाने वाले कपडे पहने और अपनी फैक्ट्री के लिए निकलने ही वाला था की उसकी पत्नी ने कहा , '' सुनो , बच्चे के लिए कोई मलहम अवश्य खरीद कर लाना है , कहते हुए उस पत्नी ने उसकी संकू की ओर एक आदेशात्मक दृश्य डाली। संकू को लगा की बच्चे के शरीर की हर एक पक्ति हुई फुंसी संकू के तरफ भयानक दृश्य से घूर रही है। एक पल खामोसी में गुजर गया। '' किस तरह का मलहम ? '' संकु ने इ मुर्ख आदमी की तरह पूंछा।
'' फुंसियों वाला मलहम ,'' पत्नी कहती गयी , '' तुम्हारा तात्पर्य यह है की तुमने बच्चे के पूरे शरीर की फुंसियाँ नहीं देखी है। '' औ हाँ। . .. कितने पैसे वाली मलहम ?... कम से कम तरह पैसे वाली। कम से कम तीन दिन तो हमें बच्चे के शरीर पर यह लगानी ही होगी , उसने पत्नी ने मधुरता से कहा ,, '' शाम को जब वापस आओ तो दो पके केले लेते आना। बच्चा रात को रोने लगता है और उसे देने के लिए मेरे पास दूध नहीं है। '' अपने बाये हाथ से अपना ब्लाउज ऊपर खींचते हुई वह वहाँ खड़ी रही।
तब संकु ने देखा की उसकी पत्नी का पेट आगे ो बढ़ा हुआ था क्या एक और वजन जिम्मेदारी चला आ रही है। संकू सन्नाटे में आ गया। उसने अपने आप को कोसा और एक गहरी साँस लेकर वह फैक्ट्री की ओर फिर से चलने लगा। '' सुनो ,भूलना मत , '' पत्नी ने उसे याद दिलाई। संकू ने ' हाँ ' में सर हिलाया और चलता गया।
मत , पत्नी ने उसे याद दिलाया संकू ने हाँ हिलाया और चला गया।
एक बजे मध्यावकाश की घण्टी बजी। प्रत्येक व्यक्ति घरों , होटलो या चाय की दुकानों की ओर दोपहर के भोजन के लिए दौड़ा। अकेला संकू ही एक ऐसा आदमी था जो कही नहीं गया। कारखाने के पश्चिम वाले कोने के खम्भे के सहारे खड़ा हुआ था। उसके दिल पर घटाएँ छायी हुई थी और संकू का दिल अधीरता से फटा पड़ रहा था। कुछ पल बीत गए।
छोटे कद का , बिल्ली जैसी आँखों वाला संगेमरमर की मूर्ति जैसा दिखने वाला , मोटा अंग्रेज इंजीनियर कमरे से निकला , उसने दरवाजा बंद किया और चला गया। सदैव की तरह उसके कलाई में घड़ी नहीं था। संकू के हृद्य में आराम के साथ ठंढक पड़ी। कुछ और पल गुजर गए। संकू ने चारो और देखा। कहीँ कोई दिखाई नहीं पड़ा।
छोटे कद का , बिल्ली जैसी आँखों वाला संगेमरमर की मूर्ति जैसा दिखने वाला , मोटा अंग्रेज इंजीनियर कमरे से निकला , उसने दरवाजा बंद किया और चला गया। सदैव की तरह उसके कलाई में घड़ी नहीं था। संकू के हृद्य में आराम के साथ ठंढक पड़ी। कुछ और पल गुजर गए। संकू ने चारो और देखा। कहीँ कोई दिखाई नहीं पड़ा।
वह दफ्तर की ओर चला गया। काँच की खिड़की सदैव की तरह थोड़ी सी बंद थी। सोने की घडी मेज घडी मेज पर थी वह कैसी चमक रही थी ! उसका दिल और तेजी से धड़कने लगा। वह अंग्रेज दोपहर के भोजन और नींद के उपरान्त चार बजे तक हो लौटेगा। एक अच्छा अवशर था। चारो ओर कोई नहीं था।
एक , दो, तीन। .. छः या सात मिनट बीत गये अचानक संकू ने सोंचा ; मनो की कोई उसे देख लेता है। तो ? डर ने उसे आगे धकेल दिया। वह कुछ कदम और चला , एक बार फिर उसने चारो ओर देखा। कहीं कोई नहीं था। उसका शरीर सिहर उठा ; उसका दिल धड़कने लगा। एक सेकण्ड बिता।
उसने हाथ आगे बढ़ाया और सोने की घडी उसके हाथ में आ गयी। घबराई हुई आँखों से उसने शीघ्रता से जाँच पड़ताल की। कोई भी वहा नहीं था। कापते हुए उसने घडी अपने पेण्ट की जेब में रख ली। उसने अपनी साँस रोकी और जल्दी -जल्दी में आगे चला गया। करीब दस कदम बाद , उसने पीछे देखा। तब उसने किसी की पूर्वी बरामदे में जल्दी जल्दी चलते देखा।
उसने हाथ आगे बढ़ाया और सोने की घडी उसके हाथ में आ गयी। घबराई हुई आँखों से उसने शीघ्रता से जाँच पड़ताल की। कोई भी वहा नहीं था। कापते हुए उसने घडी अपने पेण्ट की जेब में रख ली। उसने अपनी साँस रोकी और जल्दी -जल्दी में आगे चला गया। करीब दस कदम बाद , उसने पीछे देखा। तब उसने किसी की पूर्वी बरामदे में जल्दी जल्दी चलते देखा।
स्पष्ट था कि वह व्यक्ति टाइप -कीपर के कार्यालय को जा रह था। उसने अवश्य सब कुछ देख लिया होगा। शायद वह आदमी फाटक पर पहरेदार को खबर करने जल्दी -जल्दी जा रहा था। हे भगवन ! क्या वह कोई गड़बड़ कर बैठा है ?संकू पत्थर की मूर्ति की तरह खड़ा रह गया।
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सोने की घडी उसकी जेब में एक जलती हुई अंगारे क तरह जलती हुई प्रतीत हुई। वह घड़ी उसकी नसों में चिंगारी जला रही थी। साडी दुनिया लम्बी -लम्बी लपटों में जलती हुई उसके चारो तरफ लटटू की तरह घूमती मालूम पड़ रही थी। रेट के हर कण से जवालायें उठ रही थी।
ठंडक के लिए कोई छाया नहीं थी। हर चीज जल रही थी ,जल रही थी। ,जल रही थी। '' भाई संकू , तुम यहाँ पर खम्भे की तरह क्यों खड़े हो ? '' संकू चौंक कर घुमा तो देखा की उसके पास ही माधव खड़ा हुआ था। संकू हकला कर बोला : कोई बात नहीं है। ..... बस ऐसे ही बिना काम के। ''
ठंडक के लिए कोई छाया नहीं थी। हर चीज जल रही थी ,जल रही थी। ,जल रही थी। '' भाई संकू , तुम यहाँ पर खम्भे की तरह क्यों खड़े हो ? '' संकू चौंक कर घुमा तो देखा की उसके पास ही माधव खड़ा हुआ था। संकू हकला कर बोला : कोई बात नहीं है। ..... बस ऐसे ही बिना काम के। ''
'' चलो झूठे कहीं के , माधव हँस कर कहा और अपने काम पर चला गया। उसने जा कर चोरी की रिपोर्ट अवश्य कर दी होगी। मेरे ईश्वर ! शायद हर आदमी ने इसे जान लिया होगा। .. फैक्ट्री के पूरे आठ सौ कर्मचारी शोरगुल के उसे घेर लेंगे। वे उसकी तरफ घृणा के नजर से ताकेंगे।
वे उस पर चिढ़ाने वाली आवाजें कसेंगे : चोर !चोर ! फिर वे उसे गोर अफसर के सामने ले जाया जायेगा और उस पर बेहद डांट फटकार पड़ेगी। कितनी कठोरता से गोरा इंजीनियर उसे घूरेगा। संकू को अवश्य ही नौकरी से निकाल दिया जायेगा। वह वार्के तो एक पुराना छाता ले जाने के कारण से ही नौकरी से निकाल दिया गया था।
वे उस पर चिढ़ाने वाली आवाजें कसेंगे : चोर !चोर ! फिर वे उसे गोर अफसर के सामने ले जाया जायेगा और उस पर बेहद डांट फटकार पड़ेगी। कितनी कठोरता से गोरा इंजीनियर उसे घूरेगा। संकू को अवश्य ही नौकरी से निकाल दिया जायेगा। वह वार्के तो एक पुराना छाता ले जाने के कारण से ही नौकरी से निकाल दिया गया था।
एक ठण्डा भय संकू के दिल में समा गया और उसका दिल इसके कमजोर ख्यालों में घुटने लगा।
टाइम कीपर के दफ्तर के प्रवेश द्वार पर चौकी दर प्रतीक्षा कर रहा होगा। वह चौकीदार उसे संकू को पकड़ लेगा नहीं , उस रह में खतरा है। संकू उस घड़ी को उसके स्थान पर वापस रख देगा। एक जलता हुआ अंगारा जैसे उसे जला रहा था। परन्तु फिर दोबारा सोंचते हुए उसने मन ही मन में कहा , '' ओह , नहीं।
'' परन्तु उसने अपने मन में अंतिम फैसला कर लिया। अब वह कार्यालय एक कमरे के पास था। खिड़की अभी अधखुली थी। संकू ने चारो तरफ देखा वहाँ कोई नहीं था। उसने अपनी जेब से जल्दी से सोने की घडी निकली। उसका हाथ पेड़ के पत्ते के सामान काँप रहा था। उसको एकाएक अपने घर का और अपने सर पर चढे हुए बिना चुकाये हुए कर्ज का याद आया।
क्या किया जाना था , क्या हो सकता था ? संकु को लगा मानो उसका दम गुट रहा था। उसके पींछे किसी की पद चाप थी। कोई वापस आ रहा था। उसके पीछे किसी की पद चाप थी। कोई वापस आ रहा था। सँकू ने घड़ी वापस मेंज पर रख दी और तेजी से चल दिया।
क्या किया जाना था , क्या हो सकता था ? संकु को लगा मानो उसका दम गुट रहा था। उसके पींछे किसी की पद चाप थी। कोई वापस आ रहा था। उसके पीछे किसी की पद चाप थी। कोई वापस आ रहा था। सँकू ने घड़ी वापस मेंज पर रख दी और तेजी से चल दिया।
अब अब यह पाठ समझने में आप को आसानी होगी , आप इसे जब टाइम मिले तो एकांत में पढ़े ताकि आप को यह हमेशा के लिए याद हो जाये।
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